मंदिर श्री गंगा जी में 111 साल प्राचीन स्वर्ण कलश में रखे गंगाजल का पूजन: परंपरा, आस्था और संरक्षण क

8/5/2025 11:21:57 AM, Aniket

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मंदिर श्री गंगा जी में 111 साल प्राचीन स्वर्ण कलश में रखे गंगाजल का पूजन: परंपरा, आस्था और संरक्षण की मिसाल

वाराणसी, हरिद्वार और प्रयागराज जैसे तीर्थस्थल सदियों से गंगा माता की महिमा और भारतीय संस्कृति की परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं। इन स्थलों पर समय-समय पर ऐसी घटनाएं होती हैं जो आस्था और परंपरा को एक नए शिखर पर ले जाती हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक और दिव्य परंपरा है मंदिर श्री गंगा जी में 111 वर्षों से रखे स्वर्ण कलश में गंगाजल का पूजन

यह कोई साधारण पूजा नहीं है, बल्कि यह उस संस्कृति का प्रतीक है जिसमें गंगा जल को केवल जल नहीं, अमृत माना जाता है। इस कलश में रखा गया गंगाजल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्व रखता है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का संदेश भी देता है।

स्वर्ण कलश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

श्री गंगा जी मंदिर में स्थित यह स्वर्ण कलश लगभग 111 वर्ष पुराना है। इसे काशी के एक समृद्ध व्यापारी परिवार ने 1914 में दान किया था। इस कलश की विशेषता यह है कि इसमें गंगाजल को सहेज कर रखा गया है, जो आज भी शुद्ध और पवित्र बना हुआ है।

कलश की बाहरी संरचना शुद्ध सोने से निर्मित है और इसके शिखर पर गंगा माता की आकृति उकेरी गई है। इसे विशेष पर्वों पर मंदिर के गर्भगृह में रखा जाता है और साल में एक बार विशेष पूजन के लिए भक्तों के दर्शन हेतु प्रस्तुत किया जाता है।

111 वर्षों से जीवित परंपरा

हर वर्ष सावन पूर्णिमा के अवसर पर इस स्वर्ण कलश का विशेष पूजन किया जाता है। यह परंपरा बीते 111 वर्षों से बिना रुके चली आ रही है। इस पूजन में गंगाजल को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और वैदिक मंत्रों के साथ विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

मंदिर के महंतों के अनुसार, इस कलश में रखा गंगाजल कभी भी खराब नहीं होता। यह न केवल धार्मिक चमत्कार है, बल्कि यह गंगा जल की शुद्धता और उसकी प्राकृतिक संरचना का भी प्रमाण है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गंगाजल का महत्व

गंगाजल को लेकर अनेक वैज्ञानिक शोध हुए हैं, जिनमें यह सिद्ध हुआ है कि इसमें बैक्टीरिया रोधी गुण होते हैं। गंगाजल की यह विशेषता ही इसे वर्षों तक शुद्ध बनाए रखती है।

इस स्वर्ण कलश में रखा गया गंगाजल इसका जीवंत उदाहरण है कि भारतीय परंपराएं केवल आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि उनका वैज्ञानिक आधार भी मजबूत है।

श्रद्धालुओं में उत्साह और भक्ति

इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु मंदिर में उमड़ पड़ते हैं। वे स्वर्ण कलश के दर्शन को सौभाग्य मानते हैं और गंगाजल की कुछ बूंदों को अपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाली मान्यता रखते हैं।

श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस गंगाजल के स्पर्श मात्र से रोग, दोष और पाप नष्ट हो जाते हैं। महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए पूजा-अर्चना करती हैं, तो वहीं युवा पीढ़ी इस परंपरा को देखने के लिए उत्साहित रहती है।

पर्यावरण संरक्षण का संदेश

यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण का सशक्त संदेश भी है। गंगा नदी की पवित्रता को बनाए रखने के लिए यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि नदियों के जल का संरक्षण कैसे किया जाए।

आज जब गंगा नदी प्रदूषण की मार झेल रही है, तब यह स्वर्ण कलश और उसमें रखा गंगाजल हमें याद दिलाता है कि यदि हम अपनी नदियों को श्रद्धा और विज्ञान के साथ संभालें, तो उन्हें सदियों तक शुद्ध रखा जा सकता है।

प्रशासन और समाज की भूमिका

स्थानीय प्रशासन ने इस परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं और पर्यावरणविदों के सहयोग से इस अनुष्ठान का वैज्ञानिक पक्ष भी उजागर किया जाता है।

मंदिर समिति के अनुसार, भविष्य में इस परंपरा को डिजिटल माध्यमों से प्रसारित करने की योजना भी बनाई जा रही है, ताकि युवा पीढ़ी इसके महत्व को समझ सके और गंगा संरक्षण अभियान में अपनी भूमिका निभा सके।

निष्कर्ष

मंदिर श्री गंगा जी में 111 साल प्राचीन स्वर्ण कलश में रखे गंगाजल का पूजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, यह भारतीय संस्कृति की गहराई, वैज्ञानिकता और पर्यावरण संरक्षण की सोच का अद्भुत संगम है।

यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि यदि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें, तो आधुनिकता के इस दौर में भी अपनी सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा कर सकते हैं।

स्वर्ण कलश में रखा गंगाजल केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है कि गंगा केवल नदी नहीं, बल्कि जीवनधारा है, जिसे सहेज कर रखना हर भारतीय का कर्तव्य है।

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